महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?
महावीरप्रसाद द्विवेदी का प्रस्तुत निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है। वे अपने इस निबंध में स्त्री शिक्षा की वकालत करते हैं। वे तर्कों का सहारा लेकर अपनी बातों को हमारे सामने सही ठहराते हैं। उनके तर्क जो व्यंग्य की कसौटी पर कसे गये हैं वे सारे तर्क स्त्री शिक्षा के पक्ष में खरे उतरते हैं। उनका स्त्री शिक्षा के पक्ष में विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में निहित बातों का उदाहरण देकर पाठकों को अपनी बातों से राजी करा लेना उनकी व्यंग्य शैली की विशिष्टता ही कही जाएगी। निबंध के एक अंश में वे गार्गी जैसी विदूषी स्त्रियों की बात करते हैं। दूसरे अंश में वे मंडन मिश्र की पत्नी की बात करते हैं। एक अन्य अंश में वे कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी की बात करते हैं कि किस प्रकार रुक्मिणी कृष्ण को संस्कृत में लिखा एक लंबा सा पत्र भिजवाती हैं। वे इस प्रकार उदाहरण देकर स्त्रियों के साक्षर होने पर उनका समाज में उचित स्थान देने की वकालत करते हैं। वे इस प्रकार स्त्रियों के प्रति खुली सोच रखने की हमें शिक्षा देते हैं। इस प्रकार लेखक स्त्रीयों की प्राचीन भारत में स्थिति को अपने तर्कों से अच्छा सिद्ध करने के उपरांत उसे वर्तमान और भविष्य में हमें और अच्छा बनाने हेतु स्त्रियों के प्रति खुली सोच रखने का हमारा आह्वान करते हैं। इस प्रकार समाज में विशेषकर स्त्रियों के बारे में उनकी दूरगामी और खुली सोच उनके निबंध का अनिवार्य अंग बन पड़ी है।